Saturday, March 8, 2014

पीर विरह की

जबसे मइके चली गयी तुम,छाये जीवन में सन्नाटे 
सूनेपन और  तन्हाई में, लम्बी रातें  ,कैसे काटे 

पहले भी करवट भरते थे ,अब भी सोते करवट भर भर 
उस करवट और इस करवट में ,लेकिन बहुत बड़ा है अंतर 
तब करवट हम भरते थे तो,हो जाती थी तुमसे टक्कर 
तुम जाने या अनजाने में ,लेती मुझको बाहों में भर 
पर अब  खुल्ला खुल्ला बिस्तर ,जितनी चाहो,भरो गुलाटें 
दिन कैसे भी कट जाता है  ,लम्बी रातें  कैसे  काटें 


साभार: मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

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