Thursday, November 26, 2009

गोपाल दास नीरज/अब तुम्हारा प्यार भी. -2


अब तुम्हारा प्यार भी मुझको स्वीकार नहीं प्रेयसी!
अश्रु सी है आज तिरती याद उस दिन की नजर में,
थी पड़ी जब नाव अपनी काल तूफानी भंवर में,
कूल पर तब ही खड़ी तुम व्यंग मुझ पर कर रही थीं,
पा सका था पार मैं खूब डूबकर सागर-लहर में,
हर लहर ही आज जब लगाने लगी है पार मुझको,
तुम चलीं देने मुझे तब एक जड़ पतवार प्रेयसी!
अब तुम्हारा प्यार भी मुझको स्वीकार नहीं प्रेयसी!

Tuesday, November 24, 2009

गोपाल दास नीरज/अब तुम्हारा प्यार भी.

अब तुम्हारा प्यार भी मुझको स्वीकार नहीं प्रेयसी!
चाहता था जब ह्रदय बनना तुम्हारा ही पुजारी,
छीन कर सर्वस्व मेरा तब कहा तुमने भिखारी,
आंसुओं से रात दिन मैंने चरण धोए तुम्हारे,
पर भीगी एक क्षण भी चिर निठुर चितवन तुम्हारी,
जब तरस कर आज पूजा भावना ही मर चुकी है,
तुम चली मुझको दिखने भावमय संसार प्रेयसी!
अब तुम्हारा प्यार भी मुझको स्वीकार नही प्रेयसी!

खूबसूरत दौर


क्या बला का खूबसूरत दौर है,
आदमी हर पल यहाँ कुछ और है ******************************
क्यों
होंठ लरजते हैं,
क्या आज हुआ हमको;
खुशबू के बहाने से,
मौसम ने छुआ मुझको

Monday, November 23, 2009

इतना सरल नही.

सर्पदंशिता पीड़ाओं को कितने जन्म पड़ा लहराना,
तब आभाव के नीलकंठ से फूट रहा मदभरा तराना,
रुंधा-रुंधा पीड़ा का श्वर है अपना राग सुनाएँ कैसे,
इतना सरल नहीं होता है विष के घूँट कंठ से गाना.

जरूरत है.

आदमी बन जो धरा का भार कन्धों पर उठाए,
बाँट दे जग को अमृत बूँद अधरों से लगाए,
है जरूरत आज इसे आदमी की स्रष्टि को फिर,
विश्व का विष सिन्धु पी जाए मगर हिचकी आए

क्या बोले?

प्राण बोले प्रीति अंतस में छिपाना जानते हैं,
अधर बोले पीर को हम गुनगुनाना जानते हैं,
प्रथम तो सकुचे मगर फिर यों लजीले नयन बोले
हम धधकती आग को पानी बनाना जानते हैं.

Friday, November 20, 2009

प्रीति का दीपक


प्रीति का दीपक जलाकर फिर नमन तुमने किया है,
फिर किसी एकांत में दृग आचमन तुमने किया है,
झुक रहे हैं गीत के बादल बरसने को अधर से,
लग रहा भावनाओं का हवं तुमने किया है।

Friday, August 28, 2009

गोपाल दास नीरज/ नयन तुम्हारे

बदल गए अब नयन तुम्हारे।
साथ साथ हम चले डगर पर,
मई रो रो कर, तुम हंस हंस कर,
लिए गोद में किंतु न तुमने मेरे अश्रु बिचारे.
बदल गए......
जिनमे स्नेह सिन्धु लहराया,
प्रीती भरा काजल मुस्कराया,
देखे उनमे आज घ्रणाके धधक रहे अंगारे।
बदल गए ......
सोच रहा मैं एकाकी मन,
कितना कठिन प्रेम का बंधन,
वहीं गए हर बार जहाँ हम जीती बाजीहारे।
बदल गए......

Wednesday, August 26, 2009

गोपाल दास नीरज/प्यार सिखाना व्यर्थ है

अब मुझको प्यार सिखाना व्यर्थ है।

जब बहार के दिन थे बोली न कोयलिया,

जब वृन्दावन तड़प रहा था आया तब न सांवलिया,

बिलख बिलख मर गयी मगर जब विकल बिरह की राधा,

नयन यमुन तट प्राण; मिलन का रास रचना व्यर्थ है।

अब मुझको......

एक बूँद के लिए पपीहे ने सौ सिन्धु बहाए,

किन्तु बादलों ने जी भर कर पहन बरसाए,

तरस-तरस बन गयी मगर जब तृप्ति तृषा ही तो फिर,

पथराये अधरों पर अमृत भी बरसना व्यर्थ है।

अब मुझको.........

अब सब सपने धुल मर चुकी हैं सारी आशाएं,

टूटे सब विश्वास और बदली सब परिभाषाएं,

जीता हूँ इसलिए की जीना भी है एक विवशता,

मरने के भी लिए जिन्दगी की है आवश्यकता,

इसलिए प्रिय प्राण!किसी की सुधि का दीप सलोना,

मेरे अंधियारे खंडहर में आज जलना व्यर्थ है।

अब मुझको प्यार........

Wednesday, July 8, 2009

आप की तरह

इस जिन्दगी में बहुत आए आपकी तरह,
पर दिल में यूँ उतर न पाये आपकी तरह।
सुंदर तो सब थे अपनी तरह,
कोई खुबसूरत न था आपकी तरह।
सबकी नजरों में गहराई थी पर,
झील सी गहराई न थी आपकी तरह।
सादगी पसंद तो थे सभी मगर,
सादगी न थी किसी में आपकी तरह।
सच्चाई तो थी सभी में मगर,
सचमुच में सच न था वो आपकी तरह।
देखा सभी को मगर दिल झुक न सका,
क्योंकि इतने प्यारे नही थे आपकी तरह।
आप तो आप हैं, आप ही आप हैं,
क्योंकि हर कोई नहीं है आपकी तरह।

Wednesday, May 27, 2009

यहाँ वहाँ से

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं ,
मेरी कोशिश है की ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने सही,
हो कहीं भी आग , लेकिन आग जलनी चाहिए।

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए ,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए |
आज ये दिवार पर्दों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी ये बुनियाद हिलनी चाहिए |

कहा तो तय था चिरागां हरेक के लिए ,
कहाँ चिराग मयस्सर नही शहर के लिए |
यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है ,
चलो यहाँ से चले उम्र भर के लिए |

इस नदी की धार में हवा आती तो है।
नाव जर्जर ही सही , लहरों से टकराती तो है।

Sunday, March 22, 2009

कफ़न में जेब नहीं होती

मेरे परम पूज्य गुरुदेव (डायट अजीतमल औरैया )द्बारा लिखित।
कमा ले दौलत मनचाही, जुटा ले हीरे और मोती.
ध्यान मगर इतना रखना, कफ़न में जेब नहीं होती .
कोठी और बंगले बनवा ले, हवादार जंगल लगवा ले,
भाति भाति के द्वार सजा ले, मन चाहे रंग से रंगवा ले.
देख धनवान घर आँगन, ख़ुशी मन में बहुत होती.
ध्यान मगर इतना रखना, कफ़न में जेब नहीं होती .
रेशम सूती खद्दर पहने, चाहे सब सोने के गहने,
तेरे सगे भाई और बहने, ले उतार, कुछ ना दे रहने.
सिला लो मन चाहे जैसा, कीमती कुर्ता और धोती.
ध्यान मगर इतना रखना, कफ़न में जेब नहीं होती .
एक दिन होए जो सबका होता,
उड़ जाए पिंजडे से तोता,
बेटा-बेटी नाती पोता,
भाई बंधू सबको दुःख होता.
नारी तेरी प्रारण से प्यारी ,
शीश निज पटक पटक रोती.
ध्यान मगर इतना रखना, कफ़न में जेब नहीं होती

Monday, February 23, 2009

शाहीर लुधियानवी

मेरी नाकाम मुहब्बत की कहानी मत छेड़
अपनी मायूस उमंगों का फासाना ना सुना
ज़िंदगी तल्ख़ सही, ज़हर सही, सितम ही सही
दर्द-ओ-आज़ार सही, ज़ब्र सही, ग़म ही सही
लेकिन इस दर्द-ओ-ग़म-ओ-ज़ब्र की उसत को तो देख
ज़ुल्म की छाँव में दम तोड़ती खालक़त को तो देख
अपनी मायूस उमंगों का फ़साना ना सुना
मेरी नाकाम मुहब्बत की कहानी मत छेड़
जलसा-गाहों में ये वहशत-ज़दाह सहमे अंबोह
रहगुज़ारों पे फ़लाकात ज़दाह लोगों के गिरोह
भूख और प्यास से पाज़-मुर्दा सियाह-फ़ाम ज़मीन
तीर्ः-ओ-तार मकान, मुफलिस-ओ-बीमार मकीन
नौ इंसान में ये सरमाया-ओ-मेहनत का त्ाज़ाद्ड़
अमन के परचम तले क़ौमों का फ़साद
हर तरफ़ आतीश-ओ-आहन्न का ये सैलाब-ए-अज़ीम
नित नये तर्ज़ पे होती हुई दुनिया तक़सीम
लहलहात्ते हुए खेतों पे जवानी का समान
और दहक़न के छ्पपर में ना बत्ती ना धुआँ
ये फ़लाक-बोस मिलें, दिलकश-ओ-सीमीन बाज़ार
ये घलाज़ट ये झपटाते हुए भूखे बाज़ार
दूर साहिल पे वो शफ़्फ़ाफ़ मकानों की क़तार
सरसराते हुए पर्दों में सिमट-ते गुलज़ार
दर-ओ-दीवार पे अंवार का सैलाब रवाँ
जैसे इक शायर-ए-मदहोश के ख्वाबों का जहाँ
ये सभी क्यों है ये क्या है मुझे कुछ सोचने दे
कौन इंसान का खुदा है मुझे कुछ सोचने दे
अपनी मायुस उमंगों का फासाना ना सुना
मेरी नाकाम मुहब्बत की कहानी मत छेड़

Sunday, February 8, 2009

शहर

बड़े शहरों के ये रौनक भरे बाजार ,
लोगों की भीड़ से भरी सड़कें ,
गाड़ियों की रेलमपेल,
अब मुझे अच्छी नही लगती।
पता नहीं क्यूँ ,
मुझे सुनाई पड़ती है
बाजारों के कोनों से,
सडकों के किनारों से
आती लोगों की सिसकियाँ ,
झुग्गी - झोपडियों से आती
बच्चों के रोने की आवाजें।
अरे मोहन!
चुप तो कराओ इनको,
कोई तो ख्वाहिशें सुनो इनकी,
ये भी तो जान हैं,
इन्हें भी तो जीने का हक़ है।
सड़क के किनारे पड़े लोग,
जिनके बच्चे खेलते कूढे के ढेर पर,
शहर आए थे कुछ ख्वाहिशें लेकर,
पैसा कमाने की खातिर,
उनको पैसे वालों के बिगडैल लड़को की गाडियां ,
या तेज रफ़्तार बसें,
कुचल देती हैं ऐसे,
जैसे ये आदमी नहीं,
हों कोई कूढा करकट का ढेर।
कूढे करकट के ढेर में बढ़ते बच्चे,
कोई इनका भविष्य भी तो पूंछे ?
क्या कभी पढ़ने गए ये बच्चे?
जायेंगे कैसे, कौन देगा इनकी फीस ?
कैसे लेंगे बस्ते , किताबें और ड्रेस ?
दिन भर स्कूल में बिताएंगे,
तो क्या मिलेगा?
अरे मोहन!
दिन भर कचरा, कबाड़ बीन लेते
तो खाने का जुगाड़ हो जाता।
किसी होटल में बर्तन धो देते
तो कुछ पैसे ही मिल जाते,
किसी की जेब पार कर देते ,
तो अच्छा माल मिल जाता।
इतना बड़ा शहर , इतने कारखाने ,
इतनी कंपनियाँ, इतने ऑफिस,
कहीं इनके बापों को कम मिलता,
तो उनके बच्चे ये काम क्यूँ करते।
हाये रे ये शहर!

Monday, January 19, 2009

quotes

  • The difference between the impossible and the posible lies in a person's determination.

  • They always say time changes things, but you actually have to change them yourself.

  • Sometimes your joy is the source of your smile, but sometimes your smile can be the source of others joy.

  • A friend is one who knows us, but loves us anyway.

  • Remember the two benefits of failure, First, if you do fail, you learn what doesn't work and second, the failure gives you the opportunity to try a new approach.

  • Whenever you are asked if you can do a job, tell them, Certainly i can ! Then get busy and find out how to do it.

  • The boats are safe at harbor, but that is not the place they are meant for.

  • It is attitude which makes the differences.

  • Truth is not spoken in anger. Truth is spoken, if ever comes to be spoken, in love.

  • If you want to see a rainbow, you have to go to stand a little rain.