Tuesday, November 24, 2009

गोपाल दास नीरज/अब तुम्हारा प्यार भी.

अब तुम्हारा प्यार भी मुझको स्वीकार नहीं प्रेयसी!
चाहता था जब ह्रदय बनना तुम्हारा ही पुजारी,
छीन कर सर्वस्व मेरा तब कहा तुमने भिखारी,
आंसुओं से रात दिन मैंने चरण धोए तुम्हारे,
पर भीगी एक क्षण भी चिर निठुर चितवन तुम्हारी,
जब तरस कर आज पूजा भावना ही मर चुकी है,
तुम चली मुझको दिखने भावमय संसार प्रेयसी!
अब तुम्हारा प्यार भी मुझको स्वीकार नही प्रेयसी!

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