सिर्फ़  हंगामा खड़ा  करना मेरा मकसद नहीं ,
मेरी कोशिश है की ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने सही,
हो कहीं भी आग , लेकिन आग जलनी चाहिए।
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए ,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए |
आज ये दिवार पर्दों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी ये बुनियाद हिलनी चाहिए |
कहा तो तय था चिरागां  हरेक के लिए ,
कहाँ  चिराग मयस्सर नही शहर के लिए |
यहाँ दरख्तों के साये  में धूप  लगती है ,
चलो यहाँ से चले उम्र भर के लिए |
इस नदी की धार  में हवा आती तो है।
नाव जर्जर ही सही , लहरों से टकराती तो है।