दो बूँद सावन की -
एक सागर की सीप में टपके और मोटी बन जाए
दूजी गंदे जल में गिरकर अपना आप गंवाए
किसको मुजरिम समझे कोई , किसको दोष लगाये।
दो कलियाँ गुलशन की -
एक सेहरे के बीच गुंधे और मन ही मन इतराए
एक अर्थी की भेट छाडे और धूलि में मिल जाए
किसको मुजरिम समझे कोई , किसको दोष लगाये।
दो सखियाँ बचपन की -
एक सिंहासन पर बैठे और रूपवती कहलाये
दूजी अपने रूप के कारण गलियों में बिक जाए
किसको मुजरिम समझे कोई , किसको दोष लगाये।
Saturday, October 11, 2008
Friday, October 10, 2008
Thursday, October 9, 2008
sahir's katye 1
न मुंह छुपा के जिए हम , न सर झुका के जिए
सितमगरों की नजर से नजर मिला के जिए
अब एक रात अगर कम जिए , तो कम ही सही
यही बहुत है की हम मशालें जला के जिए ।
सितमगरों की नजर से नजर मिला के जिए
अब एक रात अगर कम जिए , तो कम ही सही
यही बहुत है की हम मशालें जला के जिए ।
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