Saturday, November 1, 2008
faraj
agar yeh pehle pata hota to kab ke mar gaye hote ….
अहमद फ़राज़ की शायरी
जाने किस बात पे उस ने मुझे छोड़ दिया है फ़राज़ !
मैं तो मुफलिस था किसी मन की दुआओं की तरह..
उस शक्श को तो बिछड़ने का सलीका नहीं फ़राज़!
जाते हुए खुद को मेरे पास छोड़ गया
अब उसे रोज सोचो तो बदन टूटता है फ़राज़..
उम्र गुजरी है उसकी याद नशा करते करते
बे -जान तो मै अब भी नहीं फराज..
मगर जिसे जान कहते थे वो छोड़ गया..
जब्त ऐ गम कोई आसान काम नहीं फराज.
आग होते है वो आंसू , जो पिए जाते हैं.
क्यों उलझता रहता है तू लोगो से फराज.
ये जरूरी तो नहीं वो चेहरा सभी को प्यारा लगे.
ahmad faraj ke kuch nagme
अब नये साल की मोहलत नहीं मिलने वाली
आ चुके अब तो शब-ओ-रोज़ अज़ाबों वाले
अब तो सब दश्ना-ओ-ख़ंज़र की ज़ुबाँ बोलते हैं
अब कहाँ लोग मुहब्बत के निसाबों वाले
ज़िन्दा रहने की तमन्ना हो तो हो जाते हैं
फ़ाख़्ताओं के भी किरदार उक़ाबों वाले
मौसम आये ही नहीं अब के गुलाबों वाले
ऐसे चुप हैं के ये मंज़िल भी ख़ड़ी हो जैसे
ऐसे चुप हैं के ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसेतेरा मिलना भी जुदाई कि घड़ी हो जैसे
अपने ही साये से हर गाम लरज़ जाता हूँ
रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे
मंज़िलें दूर भी हैं मंज़िलें नज़दीक भी हैं
अपने ही पावों में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे
कितने नादान हैं तेरे भूलने वाले के तुझे
याद करने के लिये उम्र पड़ी हो जैसे
चंद लम्हों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे
बदन में आग सी चेहरा गुलाब जैसा है
बदन में आग सी चेहरा गुलाब जैसा हैके ज़हर-ए-ग़म का नशा भी शराब जैसा है
कहाँ वो क़ुर्ब के अब तो ये हाल है जैसे
तेरे फ़िराक़ का आलम भी ख़्वाब जैसा है
मगर कभी कोई देखे कोई पढ़े तो सही
दिल आईना है तो चेहरा किताब जैसा है
वो सामने है मगर तिश्नगी नहीं जाती
ये क्या सितम है के दरिया सराब जैसा है
हमें अज़ीज़ है ख़ानाख़राब जैसा है
अहमद फराज
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें
तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बड़ता है शरबें जो शराबों में मिलें
आज हम दार पे खेंचे गये जिन बातों पर
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
आँख से दूर न हो / अहमद फराज
आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जायेगा
इतना मानूस न हो ख़िल्वत-ए-ग़म से अपनी
तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जायेगा
तुम सर-ए-राह-ए-वफ़ा देखते रह जाओगे
और वो बाम-ए-रफ़ाक़त से उतर जायेगा
ज़िन्दगी तेरी अता है तो ये जानेवाला
तेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगा
डूबते डूबते कश्ती तो ओछाला दे दूँ
मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जायेगा
ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जायेगा
ahmad faraj
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
कुछ तो मेरे ग़रूर-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ
पहले से दस्तूर न सही, फिर भी कभी तो
रस्मे-रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है, तो ज़माने के लिए आ
एक उमर से हूँ रोने से भी महरूम
ए राहत-ए-जाँ मुझको रुलाने के लिए आ
अब तक दिल-ए-खुशफ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
यह आखिरी शमाएँ भी बुझाने के लिए आ
jeevan ke safar me
मिलते हैँ बिछड जाने को
और दे जाते हैँ यादेँ
तनहाई मे तडपाने को
ये रूप की दौलत वाले
कब सुनते हैँ दिल के नाले
तकदीर न बस मे डाले
इनके किसी दीवाने को
जो इनकी नजर से ख़ेले
दुख पाये मुसीबत झेले
फिरते हैँ ये सब अलबले
दिल ले के मुकर जाने को
दिल ले के दगा देते हैँ
एक रोग लगा देते हैँ
हँस हँस के जला देते हैँ
ये हुस्न के परवाने को
अब साथ न गुजरेँगे हम
लेकिन ये फ़िजा रातोँ की
दौहराया करेगी हरदम
इस प्यार के अफ़साने को
-जीवन के सफ़र मेँ राही
मिलते हैँ बिछड जाने को
और दे जाते हैँ यादेँ
तनहाई मे तडपाने को
h.r. bacchan
प्यार किसी को करना लेकिन
कह्कर उसे बताना क्या
अपने को अर्पण करना पर
और को अपनाना क्या
गुण का ग्राहक बनना लेकिन
गाकर उसे सुनाना क्या
मन के कल्पित भावोँ से
औरोँ को भ्रम मे लाना क्या
ले लेना सुगन्ध सुमनोँ की
तोड उन्हेँ मुरझाना क्या
प्रेम हार पहनाना लेकिन
प्रेम पाश फैलाना क्या
त्याग अँक मे पले प्रेम शिशु
उनमे स्वार्थ बताना क्या
देकर ह्रिदय ह्रिदय पाने की
आशा व्यर्थ लगाना क्या
sahir ludhiyanavi
नशे में चूर फ़िज़ा इस कदर नहीं होती
तुम्हीं को देखने की दिल में आरज़ूएं हैं
तम्हारे आगे ही और ऊँची नज़र नहीं होती
ख़्हफ़ा न होना अगर बड़ के थाम लूँ दामन
ये दिल फ़रेब ख़्हता जान कर नहीं होती
तुम्हारे आने तलक हम को होश रहता है
फिर उसके बाद हमें कुछ ख़्हबर नहीं होती
jaane kyon..
जब भी में उससे मिलता हूं,
होंठ नहीं खुलते उसके पर
बोलती है उसकी आँखें
शर्मो हया रिश्तो के बंधन
रोक नहीं पाते मुझको,
अक्सर जब एक खास अदा से
उठती है उसकी आँखें
जब भी कभी मेरी आँखों से
मिलती है उसकी आँखें,
जाने क्या मेरी आँखों में
ढून्ढ़ती है उसकी आँखें....
sach kahu to..
सोचना अच्छा लगता है....................
यायावर की तरह विचरना...................
और फिर विचरते हुए खो जाना अच्छा लगता है......
रात की गुमनामी और फिर दिन की चुनौति अच्छी लगती है.........
जीवन से प्रेम और जीवन का संघर्ष अच्छा लगता है.........
और सच कहूं तो लड़ना अच्छा लगता है......
यही मैं और मेरी दूनिया है.......
ahmad faraj..
Chaly aao keh dunya say jaa raha hay koi
Azal say keh do keh ruk jaaye do Ghari
Suna hay aanay ka waada nibha raha hay koi
Wo is naaz say baithe hain Lash kay paas
Jaisy roothey howay ko manaa raha hay koi
Palat kar na aajaye phir saans nabzo'n main
Itnay haseen haathon say mayyat sajaa raha hay koi
Wo sufaid phool si ik dua meray sath sath rahee sadaa
Ye usi ka faiz hai barhaa mai bikhar bikhar k sanwar gaye
sahir ludhiyanavi...
जुल्फ-ओ-रुखसार की जन्नत नहीं कूछ और भी है
भूख और प्यास की मारी हुई इस दुनीया में इश्क हि
एक हकीकत नहीं कूछ और भी है.
प्यार पर बस तो नहीं है लेकिन फिर भी .
तू बता दे की मैं तुझे प्यार करुँ या ना करुँ
नफरतों के जहाँ में हमको प्यार की बस्तियां बसानी हैं
दूर रहना कोई कमाल नहीं, पास आओ तो कोई बात बने
वह वक़्त गया वह दौर गया जब दो कौमों का नारा था
वह लोग गये इस धरती से जिनका मकसद बटवारा थातुमसे कुव्वत लेकर, मैं तुमको राह दिखाऊँगा
तुम परचम लहराना साथी , मैं बर्बत पर गाऊँगा
आज से मेरे फन का मकसद जंजीरे पिघलाना है
आज से मैं शबनम के बदले अंगारे बरसाऊगा .