Saturday, November 1, 2008

अहमद फ़राज़ की शायरी


जाने किस बात पे उस ने मुझे छोड़ दिया है फ़राज़ !
मैं तो मुफलिस था किसी मन की दुआओं की तरह..
उस शक्श को तो बिछड़ने का सलीका नहीं फ़राज़!
जाते हुए खुद को मेरे पास छोड़ गया
अब उसे रोज सोचो तो बदन टूटता है फ़राज़..
उम्र गुजरी है उसकी याद नशा करते करते
बे -जान तो मै अब भी नहीं फराज..
मगर जिसे जान कहते थे वो छोड़ गया..
जब्त ऐ गम कोई आसान काम नहीं फराज.
आग होते है वो आंसू , जो पिए जाते हैं.
क्यों उलझता रहता है तू लोगो से फराज.
ये जरूरी तो नहीं वो चेहरा सभी को प्यारा लगे.

4 comments:

  1. हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

    वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.

    डेश बोर्ड से सेटिंग में जायें फिर सेटिंग से कमेंट में और सबसे नीचे- शो वर्ड वेरीफिकेशन में ’नहीं’ चुन लें, बस!!!

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  2. इस नए चिटठे के साथ चिटठा जगत में आपका स्‍वागत है । बहुत अच्‍छा लिखते हैं आप। आशा है कि आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को मजबूती देकर पाठको का ज्ञानवर्द्धन करेंगे। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ है।

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  3. acchi shaayari aur bahut acchi tasveer.
    yeh blog bhee dekhe
    www.chitrasansar.blogspot.com

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  4. ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. लिखते रहिये. शुभकामनयें.
    ---
    मेरे ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित हैं.

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