Saturday, November 1, 2008

sahir ludhiyanavi...

ज़िन्दगी सिर्फ मोहब्बत नहीं कूछ और भी है
जुल्फ-ओ-रुखसार की जन्नत नहीं कूछ और भी है
भूख और प्यास की मारी हुई इस दुनीया में इश्क हि
एक हकीकत नहीं कूछ और भी है.

प्यार पर बस तो नहीं है लेकिन फिर भी .

तू बता दे की मैं तुझे प्यार करुँ या ना करुँ


नफरतों के जहाँ में हमको प्यार की बस्तियां बसानी हैं
दूर रहना कोई कमाल नहीं, पास आओ तो कोई बात बने


वह वक़्त गया वह दौर गया जब दो कौमों का नारा था

वह लोग गये इस धरती से जिनका मकसद बटवारा था

तुमसे कुव्वत लेकर, मैं तुमको राह दिखाऊँगा
तुम परचम लहराना साथी , मैं बर्बत पर गाऊँगा
आज से मेरे फन का मकसद जंजीरे पिघलाना है
आज से मैं शबनम के बदले अंगारे बरसाऊगा .

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