अबतुम्हाराप्यारभीमुझकोस्वीकारनहींप्रेयसी! अश्रु सी है आज तिरती याद उस दिन की नजर में, थी पड़ी जब नाव अपनी काल तूफानी भंवर में, कूल पर तब ही खड़ी तुम व्यंग मुझ पर कर रही थीं, पा सका था पार मैं खूब डूबकर सागर-लहर में, हर लहर ही आज जब लगाने लगी है पार मुझको, तुम चलीं देने मुझे तब एक जड़ पतवार प्रेयसी! अबतुम्हाराप्यारभीमुझकोस्वीकारनहींप्रेयसी!