Monday, November 23, 2009
जरूरत है.
आदमी
बन
जो
धरा
का
भार
कन्धों
पर
उठाए
,
बाँट
दे
जग
को
न
अमृत
बूँद
अधरों
से
लगाए
,
है
जरूरत
आज
इसे
आदमी
की
स्रष्टि
को
फिर
,
विश्व
का
विष
सिन्धु
पी
जाए
मगर
हिचकी
न
आए
।
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