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Wednesday, March 26, 2014
Wednesday, March 19, 2014
Monday, March 10, 2014
Saturday, March 8, 2014
पीर विरह की
जबसे मइके चली गयी तुम,छाये जीवन में सन्नाटे
सूनेपन और तन्हाई में, लम्बी रातें ,कैसे काटे
पहले भी करवट भरते थे ,अब भी सोते करवट भर भर
उस करवट और इस करवट में ,लेकिन बहुत बड़ा है अंतर
तब करवट हम भरते थे तो,हो जाती थी तुमसे टक्कर
तुम जाने या अनजाने में ,लेती मुझको बाहों में भर
पर अब खुल्ला खुल्ला बिस्तर ,जितनी चाहो,भरो गुलाटें
दिन कैसे भी कट जाता है ,लम्बी रातें कैसे काटें
साभार: मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पूरी कविता पढने के लिए क्लिक करें: http://www.sahityapremisangh.com/2014/03/blog-post_6.html
सूनेपन और तन्हाई में, लम्बी रातें ,कैसे काटे
पहले भी करवट भरते थे ,अब भी सोते करवट भर भर
उस करवट और इस करवट में ,लेकिन बहुत बड़ा है अंतर
तब करवट हम भरते थे तो,हो जाती थी तुमसे टक्कर
तुम जाने या अनजाने में ,लेती मुझको बाहों में भर
पर अब खुल्ला खुल्ला बिस्तर ,जितनी चाहो,भरो गुलाटें
दिन कैसे भी कट जाता है ,लम्बी रातें कैसे काटें
साभार: मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पूरी कविता पढने के लिए क्लिक करें: http://www.sahityapremisangh.com/2014/03/blog-post_6.html
Sunday, January 12, 2014
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