Saturday, November 1, 2008

sahir ludhiyanavi

तुम्हारी मस्त नज़र अगर इधर नहीं होती
नशे में चूर फ़िज़ा इस कदर नहीं होती
तुम्हीं को देखने की दिल में आरज़ूएं हैं
तम्हारे आगे ही और ऊँची नज़र नहीं होती
ख़्हफ़ा न होना अगर बड़ के थाम लूँ दामन
ये दिल फ़रेब ख़्हता जान कर नहीं होती
तुम्हारे आने तलक हम को होश रहता है
फिर उसके बाद हमें कुछ ख़्हबर नहीं होती

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